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कविता

आकाशदीप

बुद्धिनाथ मिश्र


जलता रहता सारी रात एक आस में
मेरे आँगन का आकाशदीप।

पीले अक्षत का दिन सो गया
और धुआँ हो गया सिवान
मौलसिरी की नन्हीं डाल ने
लहरों पर किया दीपदान
चुगता रहता अँगार चाँदनी उजास में
मेरे आँगन का आकाशदीप।

मौन हुई मंदिर की घंटियाँ
ऊँघ रहे पूजा के बोल
मंत्र-बँधी यादों के ताल में
शेफाली शहद रही घोल
गढ़ता रहता तमाम रूप आसपास में
मेरे आँगन का आकाशदीप।

तिथियों के साथ मिटी उम्र की
भीत पर टँकी उजली रेख
हँस-हँसकर नम आँखें बाँचतीं
मटमैले पत्र शिलालेख
वरता रहता सलीब एक-एक साँस में
मेरे आँगन का आकाशदीप।

रोशनी-अँधेरे का महाजाल
बुनती है यह श्यामा रैन
पिंजड़े का सुआ पंख फड़फड़ा
उड़ने को अब है बेचैन
कसता रहता सारी रात नागफाँस में
मेरे आँगन का आकाशदीप।

 


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